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CG…जब सिर्फ राम नाम लेने से उफनती महानदी में खड़ी हो गयी नाव, जानिये क्या है रामनामी मेले का इतिहास, CMO ने किया X पर पोस्ट

रायपुर 21 जनवरी 2024। देश पूरा राममय है, हर कोई रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के बीच छत्तीसगढ़ के रामनामी मेले की भी खूब चर्चा है। रामनामी मेला का इतिहास 150 साल पुराना है। मुख्यमंत्री कार्यालय ने रामनामी मेले के इतिहास को लेकर बनाये शार्ट वीडियो को X पर पोस्ट किया है।

CMO ने X पर लिखा है, जानिए छत्तीसगढ़ के बड़े भजन मेला (राम नामी मेला) का इतिहास। कैसे श्रीराम का नाम लेते ही महानदी में बीच मझधार में रुक गई नाव और डेढ़ सौ साल पहले शुरू हुआ, रामनामी मेला जो पहली बार ग्राम पिरदा(माल खरौदा ब्लॉक वर्तमान में सक्ति जिला ) में आयोजित किया गया था। जबकि इस बार यह मेला जैजैपुर और कुरदी में आयोजित है। मेले का इतिहास बता रहे हैं ,श्री मनहरण रामनामी….

कैसे हुई रामनामी परंपरा की शुरुआत

कहा जाता है कि भारत में भक्ति आंदोलन जब चरम पर था, तब सभी धर्म के लोग अपने अराध्य देवी-देवताओं की रजिस्ट्री करवा रहे थे। उस समय दलित समाज के हिस्स में न तो मूर्ति आया और न ही मंदिर। उनसे मंदिर के बाहर खड़ा होने तक का हक छीन लिया गया था। एक सदी पहले रामनामी समाज के लोगों को भी छोटी जाति का बताकर उन्हें मंदिर में नहीं घुसने दिया गया था। साथ ही सामूहिक कुओं से पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद भगवान राम के प्रति इनकी आस्था शुरू हुई थी। इसी घटना के बाद रामनामी संप्रदाय के लोगों ने मंदिर और मूर्ति दोनों को त्याग दिया। अपने रोम-रोम में राम को बसा लिया और तन को मंदिर बना दिया। अब इस समाज के सभी लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं और इनकी पहचान ही अलग है। संप्रदाय सिर्फ राम का नाम ही शरीर पर नहीं गुदवाता बल्कि अहिंसा के रास्ते पर भी चलता है। ये न झूठ बोलते हैं, न ही मांस खाते हैं। यह राम कहानी इसी देश में बसने वाले एक संप्रदाय रामनामी की है। जिनकी पहचान महज उनके बदन पर उभरे राम के नाम सिर पर विराजते मोर मुकुट से है। इस समुदाय की विचित्रता को देखना है तो एक बार छत्तीसगढ़ के कुछ गांवों में होने वाले भजन मेले में जरूर शामिल हो।

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